श्री गणेश जी की कथा (पद्मपुराण)
पूर्वकाल में पार्वती देवी को देवताओं ने अमतृ से तैयार किया हुआ
एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक (कार्तिके य तथा गणेश)
माता से माँगने लगे।
तब माता ने मोदक के महत्व का वर्णन करते हुए कहा कि तुममें से
जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके सर्वप्रथम सभी तीर्थों का
भ्रमण कर आएगा, उसी को मैंयह मोदक दँगी।
माता की ऐसी बात सुनकर कार्तिके य ने मयूर पर आरूढ़ होकर
मुहूर्तभर में ही सब तीर्थों का स्नान कर लिया। इधर गणेश जी
का वाहन मूषक होने के कारण वे तीर्थ भ्रमण में असमर्थ थे।
तब गणेशजी श्रद्धापूर्वक माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के
सम्मुख खड़े हो गए।
यह देख माता पार्वतीजी ने कहा कि समस्त तीर्थों में किया हुआ
स्नान, सम्पूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का
अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मन्त्र, योग और संयम का पालन-
ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी
नहीं हो सकते।
इसलिए यह गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है।
अतः यह मोदक मैंगणेश को ही अर्पण करती हूँ। माता-पिता की
भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी।