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श्रवण कुमार की कथा रामायण: अयोध्याकाण्ड

  श्रवण कुमार की कथा रामायण: अयोध्याकाण्ड




जो व्यक्ति अपने माता-पिता को प्रेम कर पाए, उसे ही मैं मनुष्य 

कहता हूं। गुरजिएफ नामक विद्वान का यह विचार यदि संपूर्णत:

आचरण में आ जाए तो धरती को स्वर्ग बनते देर नहीं लगेगी। इस

संदर्भ में श्रवणकुमार की पौराणिक कथा उल्लेखनीय है।


श्रवणकुमार के माता-पिता अंधे थे। श्रवणकुमार अत्यंत श्रद्धापूर्वक

उनकी सेवा करते थे। एक बार उनके माता-पिता की इच्छा तीर्थयात्रा 

करने की हुई। श्रवणकुमार ने कांवर बनाई और उसमें दोनों को

बिठाकर कंधे पर उठाए हुए यात्रा करने लगे। एक दिन वे अयोध्या 

के समीप वन में पहुँचे ।

वहाँ रात्रि के समय माता-पिता को प्यास लगी। श्रवणकुमार पानी

के लिए अपना तुंबा लेकर सरयू तट पर गए। उसी समय महाराज

दशरथ भी वहाँ आखेट के लिए आए हुए थे। श्रवणकुमार ने जब पानी

में अपना तुंबा डुबोया, दशरथ ने समझा कोई हिरन जल पी रहा है।

उन्होंने शब्दभेदी बाण छोड़ दिया। बाण श्रवणकुमार को लगा।


दशरथ को दुखी देख मरते हुए श्रवणकुमार ने कहा- मुझे अपनी मृत्यु 

का दखु नहीं, किंतु माता-पिता के लिए बहुत दखु है। आप उन्हें

जाकर मेरी मृत्यु  का समाचार सुना दें और जल पिलाकर उनकी प्यास

शांत करें। दशरथ ने देखा कि श्रवण दिव्य रूप धारण कर विमान मे

बैठ स्वर्ग को जा रहे हैं। पुत्र का अग्नि संस्कार कर माता-पिता ने

भी उसी चिता में अग्नि समाधि ली और उत्तम लोक को प्राप्त हुए।


सार यह हैकि माता-पिता की सेवा अपार पुण्य का सजृन करती है।

इसलिए अपनी व्यस्त दिनचर्या में से कुछ समय माता-पिता के लिए

अवश्य निकालें, जो अपना संपूर्ण जीवन हमारी खुशियों के लिए होम

कर देते हैं।

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